धोकेबाज़ी और फ़रेबी चाल चलन है इस दुनिया के..
ऐसे में कहाँ साफ़ नियत किसी ने ख़ुद में बचाई होगी..
नोच कर आबरू एक माशूम की बेरहम तरीक़े से..
ऐ दरिंदे तुझे भला नींद कैसे ही आई होगी..
वो बेगुनाह और अंजान थी तेरे साज़िशों से..
तेरा कलेजा काँप नहीं उठा जब वो अपने बाप-भाई का नाम लेकर चिल्लायी होगी..
तड़पा तड़पा के तूने उस फूल को कुचला है..
अपने बहन बेटियों से तूने नजरे कैसे मिलायी होगी..
किसी बेबस पे जुल्म देख कर वैसे भी हम कुछ कर नहीं सकते..
आईने में ख़ुद को देख कर गर्दन तो शर्म से झुकाई ही होगी..
दरिंदों तुम ज़ालिम हो जो मिले उसे नोच खाते हो..
सोचता हूँ ऐसी तालीम तुमने क्या अपने माँ बाप से पायी होगी..
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