उम्मीद-ए-वफ़ा....ठीक है क्या...
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उम्मीद-ए-वफ़ा....ठीक है क्या... |
यूँ मुझसे दिन ब दिन दूर जाना ठीक है क्या..अब बिना ज़िद के ही हर बात मान जाना ठीक है क्या..
यूँ मुझसे दिन ब दिन दूर जाना ठीक है क्या..
न यादों में, न ख़्वाबों में और ना ही ख़्यालों में..
मैं तुम्हें याद नही आता अब शायद किन्ही भी हलातों में..
माना आज मैं हालातों से हारा हुआ एक नाकाम इंसान हूँ..
पर मेरी आज की नाकामी देख कर मुझे ठुकराना ठीक है क्या…
यूँ मुझसे दिन ब दिन दूर जाना ठीक है क्या..
हो सकता है मैं हूँ ग़लत, मेरा यक़ीन करो, मुझे तुम्हें सताना नही था..
ग़र थी तुम्हें मुझसे ज़रा भी शिकायत, तो तुम्हें मुझसे छुपाना नही था..
और ख़ुदा तुम्हें कामयाबी बेपनाह बख़्से..
पर इस कामयाबी के नशे में, मुझे भूलते जाना ठीक है क्या..
यूँ मुझसे दिन ब दिन दूर जाना ठीक है क्या..
अब तुझे याद नही तो बताना फ़ुज़ुल है..
ए मोहब्बत तुझे मजलिशों में बुलाना फ़ुज़ुल है..
पर ज़रा ठहरो तुम तो वही हो, जो बड़े बड़े वादे किया करते थे मोहब्बत निभाने की..
अब उन वादों को तोड़ कर जाना ठीक है क्या…
यूँ मुझसे दिन ब दिन दूर जाना ठीक है क्या..
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उम्मीद-ए-वफ़ा....ठीक है क्या... |
इश्क़ बोशि में मेरे लिए रात दिन एक सा हो गया
लगता है “NOOR” मेरे लिए मोहब्बत एक फ़रेब सा हो गया..
तू कर रही है मोहब्बत किसी और से, वादे मुझसे करके..
तू ही रहती है न इस दिल में,
अब बता.. तेरे रहते किसी और को पास लाना ठीक है क्या…
तेरा यूँ मुझसे धीरे धीरे नज़रें चुराना ठीक है क्या…
जाना…यूँ मुझसे दिन ब दिन दूर जाना ठीक है क्या..